बलिया : सेनानियों ने शहीदों को किया नमन,प्रशासन ने सेनानियों का किया भव्य स्वागत
- बाँसडीह में सेनानियों ने शहीदों को किया नमन
- बाँसडीह के प्रथम शहीद प रामदहीन ओझा
- देश मे सन् 1942 में ही बाँसडीह सर्वप्रथम हुआ आजाद
- पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने किया सेनानी रामविचार पाण्डेय का भब्य स्वागत
- 20 सेनानी व उनके परिवार की टीम बाँसडीह पहुँची
- 1942 में बांसडीह के प्रथम तहसीलदार गजाधर शर्मा
- रामदहिन ओझा
- रामेश्वर शर्मा
- निरंजन सिंह
- दवन तिवारी
- बलभद्र प्रसाद कोइरी
- विशुन राम
- शिवकुमार लाल
बांसडीह,बलिया। 18 अगस्त को परंपरा के अनुसार बलिया से बैरिया होते हुये सेनानियों व उनके उतराधिकारियों का दल वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रामविचार पांडेय के नेतृत्व में रविवार को बांसडीह कचहरी चौराहे पर पहुंचा ।
जहा पर प्रशासन की तरफ से उपजिलाधिकारी बांसडीह अभिषेक प्रियदर्शी, पुलिस क्षेत्राधिकारी प्रभात कुमार, प्रभारी निरीक्षक संजय सिंह, सेनानी उत्तराधिकारी सगठन बांसडीह के अध्यक्ष प्रतुल कुमार ओझा ने सभी सेनानियों का स्वागत फूल मालाओं से किया। सेनानियों को बांसडीह पहुंचने पर सभी एक स्वर में भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारों से क्षेत्र गुंजायमान हो गया।
इसके उपरांत सेनानी तथा उनके आश्रितों ने चौराहे पर स्थित सेनानी स्मारक और सप्तर्षि द्वार पर पुष्प अर्पित करने के उपरांत बांसडीह डाकबंगला स्थित शहीद पंडित रामदहीन ओझा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया,ब्लॉक परिसर में बने सेनानी स्तंभ पर अपनी श्रधांजलि अर्पित की।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामविचार पाण्डेय ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि 18 अगस्त को शहीद हुए सेनानियों को मै श्रद्धांजलि देता हूं।बांसडीह कस्बे के सात सेनानियों रामदहिन ओझा, रामेश्वर शर्मा, निरंजन सिंह, दवन तिवारी, बलभद्र प्रसाद कोइरी, विशुन राम व शिवकुमार लाल व अन्य के संघर्ष के बल पर ही 17 अगस्त 1942को ही बांसडीह आजाद हो गया था। उन्होंने युवाओं से सेनानियों के बताये रास्ते पर चलने का आह्वान किया। कहा आज का दिन बलिया के व देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। सन् 1942 में ही देश मे बाँसडीह सर्वप्रथम आजाद होने वाला नगर बना था।हम सब लोगो ने मिलकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी।आज सेनानियों के बल पर ही हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं। बाँसडीह के प्रथम शहीद प रामदहीन ओझा रहे ,तो 1942 में प्रथम तहसीलदार गजाधर शर्मा बने।जो इतिहास के पन्नो में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रूप से सुनील सिंह,बिनय पाण्डेय,बंशरोपन पाण्डेय,बासदेव ठाकुर,संतोष शुक्ल,,गंगासागर सिंह,डा बिनोद, राकेश मिश्र,अवनीश पाण्डेय,चंदन गुप्ता,मेहीलाल सिंह,दीवान ,बसंत सिंह,श्रीराम ,राकेश सिंह,मुन्जी गोंड़ आदि रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रतुल ओझा ने किया।